सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

वादों की सौगात

 करते थे जो अच्छे दिन की बात ।
 दिखलाते थे जो दिन में भी ख़्वाब ।
  बीते दिन गुजरी रात बस इंतज़ार ,
  गप्पो के सरताज गप्पो के सरताज ।

  परोस रहे वो सजा सजा कर थाल ,
  मीठे वादों की  मीठी केसरिया भात । 
 सज रही सेज सी फिर वो टूटी खाट ,
 वादों और नारों से फिर गूंजा आकाश ।

 होतीं फिर बही आज , लंबी लंबी बात ,
 बनाते कल सुन्हेरा,जो बना सके न आज ।
 देखो भर भर थैला लाए वो सौगात , 
 बाँट रहे है खुले दिलों से वो ज़ज़्वात । 
 आने बाले है शायद फिर , 
 अब एक और आम चुनाव । 
 ... विवेक दुबे "निश्चल"@...

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...