यादों की जंजीरों से जकड़कर मुझे।
तुम भूल जाने का हक़ न दो मुझे ।
फैली है खुश्बू-ऐ-चमन दूर तक,
गुलशन का तसब्बुर न दो मुझे ।
आया हूँ झोंका हवा का बस यूँ ही,
खुशबू-ऐ-गुलशन नाम न दो मुझे ।
मुसाफ़िर हूँ गुजर जाऊँगा शहर से तेरे ,
अपने वाशिन्दों में यूँ जगह न दो मुझे ।
कहता है कैद परिंदा मुझसे ।
"निश्चल" छूने दो आसमाँ मुझे ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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