रविवार, 18 फ़रवरी 2018

आस पिया मिलन की

तपिश गुनगुनी धूप की  ,
 अहसासों के आँचल ।
           गुलाबी सुबह सबेरे ,
           बस एक ठंडी छाँव ।

 वो यादों के गाँव ,
 छूटे बिसराते ठाँव ।
             वो थके कदम ,
             यह *"निश्चल"* मन ।

 यह साँसों की डोर ,
 वो धुँधली सी भोर ।
             बस यादें प्रीतम की ,
            आस पिया मिलन की ।

 बस इतनी ही धुन ,
 मन मन की सुन ।
              बंधन इस तन के ,
               छूटे कैसे मन तन से ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"@..

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