मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

सब है पर

 सब है पर क्यों कुछ नही  ।
 भाग्य पर क्यों बस नही ।
 चलता रोशनी की छाँव में
 पर साँझ ढले मुकाम नही  ।
 ... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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