भागती हर गली सड़क मेरे शहर की ।
बदली कुछ यूँ नियत मेरे शहर की ।
छूटते अब हाथ से हाथों हाथ के ,
उठतीं थीं बाहों में बाहँ विश्वास की ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
बदली कुछ यूँ नियत मेरे शहर की ।
छूटते अब हाथ से हाथों हाथ के ,
उठतीं थीं बाहों में बाहँ विश्वास की ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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