शनिवार, 3 मार्च 2018

श्रृंगारित उर्वी फिर

 व्यथित देख उसे, हृदय द्रवित उसका ।
 प्रालेय बन अंबर,  धरा तन पिघला ।
 छलके स्वेद कण , तन अंबर से ,
पुलकित उर्वी , तन फिर दमका ।
 आभित दीप्त प्रभा , निहार कण कण ,
 श्रृंगारित उर्वी फिर , नवयौवन तन मन ।
.........विवेक दुबे"निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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