रो रही चाँदनी, सिसक रहा चाँद ।
उदास धरा, सूना सा आसमान ।
लुट रहे हैं अपनो के ही हाथों,
आज अपनो के ही मकान।
.....विवेक दुबे "निश्चल"©.......
उदास धरा, सूना सा आसमान ।
लुट रहे हैं अपनो के ही हाथों,
आज अपनो के ही मकान।
.....विवेक दुबे "निश्चल"©.......
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