सोमवार, 28 मई 2018

फिर आज एक ग़जल कही उसने

फिर आज एक ग़जल कही उससे ।
 कुछ अपनी कुछ मेरी कही उससे ।

 अल्फ़ाज़ थे ज़ज्बात से भरे भरे ,
 फिर निग़ाह से बात कही उससे ।

  न था चाँद उस रात आसमाँ पे ,
 साँझ ढ़ले चाँद की बात कही उससे ।

 न उतरी शबनम सितारों से जमीं पे,
 भोर शबनमीं मुलाक़ात कही उससे ।

 वादा मुकम्मिल शेर का था "निश्चल" ,
 बात हर शेर अधूरी मैंने कही उससे ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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