फिर आज एक ग़जल कही उससे ।
कुछ अपनी कुछ मेरी कही उससे ।
अल्फ़ाज़ थे ज़ज्बात से भरे भरे ,
फिर निग़ाह से बात कही उससे ।
न था चाँद उस रात आसमाँ पे ,
साँझ ढ़ले चाँद की बात कही उससे ।
न उतरी शबनम सितारों से जमीं पे,
भोर शबनमीं मुलाक़ात कही उससे ।
वादा मुकम्मिल शेर का था "निश्चल" ,
बात हर शेर अधूरी मैंने कही उससे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
कुछ अपनी कुछ मेरी कही उससे ।
अल्फ़ाज़ थे ज़ज्बात से भरे भरे ,
फिर निग़ाह से बात कही उससे ।
न था चाँद उस रात आसमाँ पे ,
साँझ ढ़ले चाँद की बात कही उससे ।
न उतरी शबनम सितारों से जमीं पे,
भोर शबनमीं मुलाक़ात कही उससे ।
वादा मुकम्मिल शेर का था "निश्चल" ,
बात हर शेर अधूरी मैंने कही उससे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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