शनिवार, 2 जून 2018

लिख गया मैं

   लिख गया मैं हर बात को ।
  जीतकर हार के हालात को ।

  चलती परछाइयां संग मेरे ,
  छोड़ अपने ही प्रकाश को ।

  जीत नहीं कसा मैं कभी  ,
  परछाइयों के आभास को ।

 थक चला दिन अब तो ,
 लिया संग अब रात को ।

  पाएगा चैन कुछ पल को ,
  दे आकाश अपने चाँद को ।

 .... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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