शनिवार, 2 जून 2018

मुक्तक 387/391

387
जिंदगी उन्हें कभी हराती कैसे ।
साथ दुआएँ जो माँ की लेते ।
कदमों में उनके आकाश झुके ।
 जिनके सर माँ के आशीष रुके ।
..... 
388
 ख़ुदा से माँगा नहीं कुछ मैंने ।
बस अपनी बंदगी पेश की है ।
सज़दे में गुनाह कबूल कर ,
रहम के लिए फैलाए हाथ हैं ।
        ....
389
लहरें चलतीं कल कल है ।
लहरों का तो चँचल दिल है ।
 सहता लहरों की हलचल को ,
 साहिल को क्या हाँसिल है ।
.... 
390
स्थितियाँ बदलतीं है 
 परिस्थितियाँ बदलतीं है ।
 चित्र वही रहते है ।
 भित्तियाँ बदलतीं है ।
.... 
391
   डूबता रहा उभरता रहा ।
  दरिया का इतना असर रहा । 
  रात थी सितारों से सजी ,
  नाम चाँद के हर सफऱ रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...


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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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