शनिवार, 2 जून 2018

रक्कासा सी नाची है

.... *जिंदगी*....

आशाओं संग अभिलाषाओं से हारी है ।
नित् नए स्वप्न सजा दुल्हन सी साजी है ।

हो रहे पग घायल , पग घुंघरू बाँधे बाँधे , 
घुँघरू की थिरकन पर घुँघरू सी बाजी है ।

नित नव श्रृंगार सजाकर यह ज़िंदगी ,
आशाओं संग रक्कासा सी नाची है।
....
लुटती है घुटती है यह हर थिरकन पर ,
अपनी थिरकन से फिर भी न हारी है ।

 रूप रंग भर नव चेतन का तन मन में ,
 प्रणय निवेदन सी पल पल जागी है ।

 टूट रहीं छूट रही है डोरे सांसों की ,
 फिर भी चाहों में जीवन बाँकी है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...