मंगलवार, 29 मई 2018

मुक्तक

छू जातीं लहरें अहसास जगाती है ।
 मुड़ जातीं है मुड़कर आ जाती है ।
 यह ठहरी नही कभी किनारों पर ,
 यह लहरें तो बस आती जाती है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@ ...

तुम बिन प्रणय बिन श्रृंगार लिखो ।
मत जीत लिखो मत हार लिखो ।
प्रतिकार मिले हर मनमानी का ,
शब्दों में कुछ ऐसे अंगार लिखो ।

 ... विवेक दुबे"निश्चल"@....


   समंदर भी किताब हुए ।
   अहसास तले हालात हुए ।
   तैरते अल्फ़ाज़ निगाहों में ,
   ख़्याल उफ़्क के पार हुए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

उफ़्क (क्षितिज)

शब्द तरल मन उतरे है ।
सागर से मन बिखरे है ।
बहते है दूर क्षितिज तक ,
अर्थ गूढ़ घनेरे उभरे है ।
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 कुछ अंदाज़ अंजाने से ।
 कुछ जाने पहचाने से ।
  कशिश अल्फ़ाज़ की ,
   लफ्ज़ क्युं बेगाने से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

 कुछ अंदाज़ अंजाने से ।
 कुछ जाने पहचाने से ।
  कशिश अल्फ़ाज़ की ,
   लफ्ज़ क्युं बेगाने से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....


आहटें सितारे सुनते रहे ।
 भोर के ख्याल बुनते रहे ।
 हम लौटकर क्षितिज से ,
 क्षितिज को गुनते रहे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...


    गुजरते रहे हम हर हालात से ।
    लड़ते रहे वक़्त के मिज़ाज से ।
   दौर-ऐ-उम्र किस को बयां करें ,
    जीत न सके अपने आप से ।
     .... विवेक दुबे"निश्चल"@...

मैं भटका अपने हालात से ।
 हार कर आज को आज से ।
 चलता ही रहा फिर भी मैं  ,
 जीतकर काल के आघात से ।

  .... विवेक दुबे"निश्चल"@..

 ता - उम्र का मुझे यूँ ईनाम मिला ।
 निगाहों में उसकी बदनाम मिला ।
..... विवेक दुबे"निश्चल".....

ता-उम्र का यूँ ईनाम मिला ।
 निगाहों में बदनाम मिला ।
 सींचकर अश्क़ शबनम से ,
  कदमों तले मुक़ाम मिला ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"....




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