छू जातीं लहरें अहसास जगाती है ।
मुड़ जातीं है मुड़कर आ जाती है ।
यह ठहरी नही कभी किनारों पर ,
यह लहरें तो बस आती जाती है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@ ...
तुम बिन प्रणय बिन श्रृंगार लिखो ।
मत जीत लिखो मत हार लिखो ।
प्रतिकार मिले हर मनमानी का ,
शब्दों में कुछ ऐसे अंगार लिखो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
मुड़ जातीं है मुड़कर आ जाती है ।
यह ठहरी नही कभी किनारों पर ,
यह लहरें तो बस आती जाती है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@ ...
तुम बिन प्रणय बिन श्रृंगार लिखो ।
मत जीत लिखो मत हार लिखो ।
प्रतिकार मिले हर मनमानी का ,
शब्दों में कुछ ऐसे अंगार लिखो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
समंदर भी किताब हुए ।
अहसास तले हालात हुए ।
तैरते अल्फ़ाज़ निगाहों में ,
ख़्याल उफ़्क के पार हुए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
उफ़्क (क्षितिज)
शब्द तरल मन उतरे है ।
सागर से मन बिखरे है ।
बहते है दूर क्षितिज तक ,
अर्थ गूढ़ घनेरे उभरे है ।
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कुछ अंदाज़ अंजाने से ।
कुछ जाने पहचाने से ।
कशिश अल्फ़ाज़ की ,
लफ्ज़ क्युं बेगाने से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
कुछ अंदाज़ अंजाने से ।
कुछ जाने पहचाने से ।
कशिश अल्फ़ाज़ की ,
लफ्ज़ क्युं बेगाने से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
आहटें सितारे सुनते रहे ।
भोर के ख्याल बुनते रहे ।
हम लौटकर क्षितिज से ,
क्षितिज को गुनते रहे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
गुजरते रहे हम हर हालात से ।
लड़ते रहे वक़्त के मिज़ाज से ।
दौर-ऐ-उम्र किस को बयां करें ,
जीत न सके अपने आप से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
मैं भटका अपने हालात से ।
हार कर आज को आज से ।
चलता ही रहा फिर भी मैं ,
जीतकर काल के आघात से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
ता - उम्र का मुझे यूँ ईनाम मिला ।
निगाहों में उसकी बदनाम मिला ।
..... विवेक दुबे"निश्चल".....
ता-उम्र का यूँ ईनाम मिला ।
निगाहों में बदनाम मिला ।
सींचकर अश्क़ शबनम से ,
कदमों तले मुक़ाम मिला ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"....
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