रविवार, 27 मई 2018

जीत का प्रसाद हो ।

जीत का प्रसाद हो ।
 हार का प्रतिकार हो ।

 नभ के भाल पर ,
 भानु सा श्रृंगार हो ।

 नहीं जीतकर भी ,
 जीत का विश्वास हो ।

 तोड़कर हर बंधन ,
 चलने को तैयार हो ।

राह नई गढ़कर ,
 लक्ष्य साकार हो ।

 रजः उड़ाते कदमों का ,
 लक्ष्य को इंतज़ार हो ।

   जीतकर संघर्षो से ,
  ज़ीवन पर विश्वास हो ।

जीत का प्रसाद हो ।
 हार का प्रतिकार हो ।

 .... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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