सोमवार, 28 मई 2018

कुछ तुम कहो अपनी

कुछ तुम कहो अपनी ।
 कुछ हम कहे अपनी ।

 न यह आसमां अपना ।
 न यह जमीं अपनी ।

 टूटता सितारा आसमां से ,
  खोजता जमीं अपनी ।

  छोड़ दामन अंबर का ,
  बून्द सागर को मचली ।

 ज़ज्ब होती हसरत दिल मे ,
 हालात की फ़ितरत बदली ।

 खोज ख्वाबों से लाया जिसको ,
 भोर ख्बाबों से बिखरी बिखरी ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@..

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...