शनिवार, 17 नवंबर 2018

मैं बस एक सादा सा रिश्ता हूँ ।

 मैं जैसा हूँ बदल नहीं सकता हूँ ।
 मैं बस एक सादा सा रिश्ता हूँ ।

पहुँचे लक्ष्य मुहाने चल मुझ पर ,
हाँ मैं एक सीध सा ही रस्ता हूँ ।

सहज रहा आती जाती यादों को ,
पीठ धरे हरदम यादों का बस्ता हूँ ।

 मैं जैसा हूँ बदल नहीं सकता हूँ ।
 मैं बस एक सादा सा रिश्ता हूँ ।

धूमिल संध्या कुछ पद चापों से ,
दिनकर के आते फिर पिसता हूँ । 

 अपने तन पर पड़ते घावों को ,
 आते जाते कदमो से घिसता हूँ ।

 मैं जैसा हूँ बदल नहीं सकता हूँ ।
 मैं बस एक सादा सा रिश्ता हूँ ।

 धूप कहीं छाँव कहीं मुझ पर ,
 मंजिल की खातिर बिछता हूँ ।

 "निश्चल" रहा हर दम ही मैं ।
 बढ़ता हूँ ना ही मैं घटता हूँ ।

पहुँचे लक्ष्य मुहाने चल मुझ पर ,
हाँ मैं एक सीध सा ही रस्ता हूँ ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 5(179)




मैं बस एक सादा सा रिश्ता हूँ ।

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