649
एक मुसलसल, सिलसिला चाहिए ।
अल्फ़ाज़ लफ्ज़ का, सिला चाहिए ।
फेर ले नजर कोई , शराफत से ,
ऐसी कोई भी , नही गिला चाहिए ।
.
गिला/निंदा/ उलाहना
...
650
हार कर भी न हार हो ।
रिश्तों का यूँ व्यवहार हो ।
मिलते रहे बे-मोल ही ,
न कही कोई व्यापार हो ।
....
651
जीवन का ऐसा ताना है ।
उधड़ा सा हर बाना है ।
सहज रहा तार तार को ,
पोर पोर ख़ुद को पाना है ।
...
सहज चल तार तार को ,
पोर पोर खुद को जाना है ।
....
652
मैं झुकता गया दूब सा ।
मैं तमाशा रहा खूब सा ।
है निग़ाहों में तल्खियाँ ,
यूँ तो हूँ मैं मेहबूब सा ।
....
653
रिश्तों की यही निशानी है ।
बनती बिगड़ती कहानी है ।
तोल रहे कुछ , मोल से ,
बीत रही ये जिंदगानी है ।
...
654
हो गई रंगीन दुनियाँ,
यूँ निग़ाहों के सामने ।
रंग बदल, गुजरते गये,
लोग निग़ाहों के सामने ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3
एक मुसलसल, सिलसिला चाहिए ।
अल्फ़ाज़ लफ्ज़ का, सिला चाहिए ।
फेर ले नजर कोई , शराफत से ,
ऐसी कोई भी , नही गिला चाहिए ।
.
गिला/निंदा/ उलाहना
...
650
हार कर भी न हार हो ।
रिश्तों का यूँ व्यवहार हो ।
मिलते रहे बे-मोल ही ,
न कही कोई व्यापार हो ।
....
651
जीवन का ऐसा ताना है ।
उधड़ा सा हर बाना है ।
सहज रहा तार तार को ,
पोर पोर ख़ुद को पाना है ।
...
सहज चल तार तार को ,
पोर पोर खुद को जाना है ।
....
652
मैं झुकता गया दूब सा ।
मैं तमाशा रहा खूब सा ।
है निग़ाहों में तल्खियाँ ,
यूँ तो हूँ मैं मेहबूब सा ।
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653
रिश्तों की यही निशानी है ।
बनती बिगड़ती कहानी है ।
तोल रहे कुछ , मोल से ,
बीत रही ये जिंदगानी है ।
...
654
हो गई रंगीन दुनियाँ,
यूँ निग़ाहों के सामने ।
रंग बदल, गुजरते गये,
लोग निग़ाहों के सामने ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3
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