गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

जीवन

683

एक रजः कण यूँ तो अपूर्ण रहा ।
पर स्वयं में स्वयं वो परिपूर्ण रहा ।

 घूणित द्रव्यमान अंतर् में जिसके ,
 अंतर्मन ब्रह्मांड एक सम्पूर्ण रहा ।

 करता जो हरदम श्रम क्षमता से ,
 स्थिर केंद्र गतिमान वो घूर्ण रहा ।

थकित नही जो नियति नियम से ,
जीवन एक वो ही तो पूर्ण रहा ।

   .... विवेक दुबे"निश्चल"@...

 डायरी 6(93)

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