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एक रजः कण यूँ तो अपूर्ण रहा ।
पर स्वयं में स्वयं वो परिपूर्ण रहा ।
घूणित द्रव्यमान अंतर् में जिसके ,
अंतर्मन ब्रह्मांड एक सम्पूर्ण रहा ।
करता जो हरदम श्रम क्षमता से ,
स्थिर केंद्र गतिमान वो घूर्ण रहा ।
थकित नही जो नियति नियम से ,
जीवन एक वो ही तो पूर्ण रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(93)
एक रजः कण यूँ तो अपूर्ण रहा ।
पर स्वयं में स्वयं वो परिपूर्ण रहा ।
घूणित द्रव्यमान अंतर् में जिसके ,
अंतर्मन ब्रह्मांड एक सम्पूर्ण रहा ।
करता जो हरदम श्रम क्षमता से ,
स्थिर केंद्र गतिमान वो घूर्ण रहा ।
थकित नही जो नियति नियम से ,
जीवन एक वो ही तो पूर्ण रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(93)
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