671
एक ठहरा हुआ असर सा ।
भागते से , इस शहर सा ।
कुछ जीतने की चाहत में ,
चाहतों पे , एक कहर सा ।
672
वक़्त का कुछ कर्ज़ सा ।
रहा कही क्यों फ़र्ज़ सा ।
बदलता ही रहा हर घड़ी ,
बस रहा इतना ही हर्ज़ सा
....
673
क्यों किसी को , ख़ास कहा जाए ।
दिल-ओ-जाँ , पास कहा जाए ।
बदलता है ,करवटें वक़्त भी तो ,
रात को क्यों न , आस कहा जाए ।
...
674
कहाँ कौन पढ़ रहा है किसको ।
यहाँ कौन गढ़ रहा है किसको ।
एक सैलाब है यह वक़्त का ,
जो डुबोने बढ़ रहा है जिसको ।
...
675
लोग पढ़ते रहे यूँ ही ।
आह भरते रहे यूँ ही ।
डूबे हर्फ़ हर्फ़ अश्क़ में ,
दरिया बहते रहे यूँ ही ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
एक ठहरा हुआ असर सा ।
भागते से , इस शहर सा ।
कुछ जीतने की चाहत में ,
चाहतों पे , एक कहर सा ।
672
वक़्त का कुछ कर्ज़ सा ।
रहा कही क्यों फ़र्ज़ सा ।
बदलता ही रहा हर घड़ी ,
बस रहा इतना ही हर्ज़ सा
....
673
क्यों किसी को , ख़ास कहा जाए ।
दिल-ओ-जाँ , पास कहा जाए ।
बदलता है ,करवटें वक़्त भी तो ,
रात को क्यों न , आस कहा जाए ।
...
674
कहाँ कौन पढ़ रहा है किसको ।
यहाँ कौन गढ़ रहा है किसको ।
एक सैलाब है यह वक़्त का ,
जो डुबोने बढ़ रहा है जिसको ।
...
675
लोग पढ़ते रहे यूँ ही ।
आह भरते रहे यूँ ही ।
डूबे हर्फ़ हर्फ़ अश्क़ में ,
दरिया बहते रहे यूँ ही ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
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