690
कह गया बात वो,
ईमान से ईमान की ।
नही कोई जात,
इंसान की पहचान की ।
बदलता है रंग ,
अक्सर खुदगर्ज़ी के वो ,
है नही फ़िक़्र उसे ,
क्यों उस जहान की ।
-----
691
यूँ बदलता रंगत , इंसान गया ।
जो बदलता , अहसान गया ।
रह गया दौर , ख़ुदगर्ज़ी का ,
क्यूँ जात इंसां से, ईमान गया ।
....
692
इस दौर-ऐ-जफ़ा में,
तुम वफ़ा कहाँ से लाओगे ।
तिज़ारत-ऐ-जहां में,
तुम सफ़ा कहाँ से लाओगे ।
घुला है ज़हर ,
आब-ओ-हवा में,अब इस क़दर ,
इस क़ायम दुनियाँ में,
तुम शफ़ा कहाँ से लाओगे ।
जफ़ा/अन्याय
सफ़ा/साफ/पवित्र
शफ़ा/स्वस्थ
.....
693
न मैं किसी को समझ सका ।
न ही कोई मुझे समझ सका ।
न खरीद सका मैं किसी को ,
न ही मैं कहीं बिक सका ।
-----
694
जिंदगी संजीद रही ।
यूँ अपनी ईद रही ।
बदले हालात अस्र से ,
वक़्त की ताकीद रही ।
......
संजीदा/गम्भीर शांत
ताक़ीद/आग्रह
695
है मेरी गुरु सी वो ।
सुधारती है त्रुटि वो ।
सिखा रीत ज़ीवन की ,
सदा संवारती है वो ।
..
696
हाँ , नही कहना सीख लो ।
स्व को , स्वयं से खींच लो ।
"निश्चल" चलो निज भाव से,
आत्म निवेदित रीत लो ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
कह गया बात वो,
ईमान से ईमान की ।
नही कोई जात,
इंसान की पहचान की ।
बदलता है रंग ,
अक्सर खुदगर्ज़ी के वो ,
है नही फ़िक़्र उसे ,
क्यों उस जहान की ।
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691
यूँ बदलता रंगत , इंसान गया ।
जो बदलता , अहसान गया ।
रह गया दौर , ख़ुदगर्ज़ी का ,
क्यूँ जात इंसां से, ईमान गया ।
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692
इस दौर-ऐ-जफ़ा में,
तुम वफ़ा कहाँ से लाओगे ।
तिज़ारत-ऐ-जहां में,
तुम सफ़ा कहाँ से लाओगे ।
घुला है ज़हर ,
आब-ओ-हवा में,अब इस क़दर ,
इस क़ायम दुनियाँ में,
तुम शफ़ा कहाँ से लाओगे ।
जफ़ा/अन्याय
सफ़ा/साफ/पवित्र
शफ़ा/स्वस्थ
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693
न मैं किसी को समझ सका ।
न ही कोई मुझे समझ सका ।
न खरीद सका मैं किसी को ,
न ही मैं कहीं बिक सका ।
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694
जिंदगी संजीद रही ।
यूँ अपनी ईद रही ।
बदले हालात अस्र से ,
वक़्त की ताकीद रही ।
......
संजीदा/गम्भीर शांत
ताक़ीद/आग्रह
695
है मेरी गुरु सी वो ।
सुधारती है त्रुटि वो ।
सिखा रीत ज़ीवन की ,
सदा संवारती है वो ।
..
696
हाँ , नही कहना सीख लो ।
स्व को , स्वयं से खींच लो ।
"निश्चल" चलो निज भाव से,
आत्म निवेदित रीत लो ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
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