665
हालात लिखा करता हूँ ।
असरात लिखा करता हूँ ।
बिखेरकर अल्फ़ाज़ अपने ,
ज़ज्बात लिखा करता हूँ ।
.---
666
जूझता रहा मैं ,
हालात के हादसों से ।
गुजरता रहा मैं ,
वक़्त के रास्तों से ।
कहाँ किसे कहुँ ,
मैं मंजिल अपनी ,
बा-वास्ता रहा मैं ,
खुदगर्ज वास्तो से ।
-----
667
लिखता रहा खत,
ख़्वाब ख़यालों से ।
पैगाम-ए-इश्क़ ,
जिंदगी के सवालों से ।
पलटता रहा मैं ,
जिल्द किताबों की ,
मिलते नही होंसलें ,
कुछ मिसालों से ।
-----
668
वक़्त बड़ा कमज़र्फ हुआ है ।
जफ़ा भरा हर्फ़ हर्फ़ हुआ है ।
घुट रहे है अरमान सीनों में ,
ये सर्द दर्द अब वर्फ़ हुआ है ।
---
669
आँख मूंदने से रात नही होती ।
झूंठे की कोई साख नही होती ।
उड़ान कितनी भी हो ऊँची ,
आसमान में सुराख नही होती ।
---
670
कुछ कतरन है दिन की ।
रीते रीते से बर्तन सी ।
रीत रहे दिन खाली खाली ,
रातें है उतरे यौवन सी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(59)
जफ़ा/ जुल्म
कमज़र्फ/ ओछा /कमीना
Blog post 10/11/18
हालात लिखा करता हूँ ।
असरात लिखा करता हूँ ।
बिखेरकर अल्फ़ाज़ अपने ,
ज़ज्बात लिखा करता हूँ ।
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666
जूझता रहा मैं ,
हालात के हादसों से ।
गुजरता रहा मैं ,
वक़्त के रास्तों से ।
कहाँ किसे कहुँ ,
मैं मंजिल अपनी ,
बा-वास्ता रहा मैं ,
खुदगर्ज वास्तो से ।
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667
लिखता रहा खत,
ख़्वाब ख़यालों से ।
पैगाम-ए-इश्क़ ,
जिंदगी के सवालों से ।
पलटता रहा मैं ,
जिल्द किताबों की ,
मिलते नही होंसलें ,
कुछ मिसालों से ।
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668
वक़्त बड़ा कमज़र्फ हुआ है ।
जफ़ा भरा हर्फ़ हर्फ़ हुआ है ।
घुट रहे है अरमान सीनों में ,
ये सर्द दर्द अब वर्फ़ हुआ है ।
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669
आँख मूंदने से रात नही होती ।
झूंठे की कोई साख नही होती ।
उड़ान कितनी भी हो ऊँची ,
आसमान में सुराख नही होती ।
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670
कुछ कतरन है दिन की ।
रीते रीते से बर्तन सी ।
रीत रहे दिन खाली खाली ,
रातें है उतरे यौवन सी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(59)
जफ़ा/ जुल्म
कमज़र्फ/ ओछा /कमीना
Blog post 10/11/18
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