655
मैं तिनका , न सूखता न डूबता रहा।
साथ किनारों के, तैरता बजूद सा रहा।
बहता ही रहा ,हालात के साथ हरदम ,
मैं वक़्त के थपेड़ों से ही, जूझता रहा ।
.....
656
शिनाख़्त करता अगर , ज़ख्म जो तीरों की ।
उजड़ती ईमान नियत ,अपनो के जमीरों की ।
हँसता ही रहा ,सहता ही रहा हर पीर को ,
कुछ ऐसी थी ,तासीर वफ़ा उन नजीरों की ।
...
वफ़ा/निष्ठा नज़ीर/उदहारण
....
667
जिंदगी रंग बदल के , आई कभी हँसाने को ।
आया रंग बदल के ,जमाना कभी रुलाने को ।
हर नज़्म में ,करता रहा बयां हालात वक़्त से ,
सुनता रहा वक़्त , खमोशी से हर फ़साने को ।
....
658
घटता रहा वो कुछ , जो घटा ही नही ।
दिखता रहा वो कुछ, जो दिखा ही नही ।
कह गया वो हर बात , बस बात बात में ,
लिखता रहा वो कुछ, जो लिखा ही नही ।
...
लिख गया वो हर बात, बस बात बात में ,
कहता रहा वो कुछ , जो कहा ही नही ।
.......
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
मैं तिनका , न सूखता न डूबता रहा।
साथ किनारों के, तैरता बजूद सा रहा।
बहता ही रहा ,हालात के साथ हरदम ,
मैं वक़्त के थपेड़ों से ही, जूझता रहा ।
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656
शिनाख़्त करता अगर , ज़ख्म जो तीरों की ।
उजड़ती ईमान नियत ,अपनो के जमीरों की ।
हँसता ही रहा ,सहता ही रहा हर पीर को ,
कुछ ऐसी थी ,तासीर वफ़ा उन नजीरों की ।
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वफ़ा/निष्ठा नज़ीर/उदहारण
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667
जिंदगी रंग बदल के , आई कभी हँसाने को ।
आया रंग बदल के ,जमाना कभी रुलाने को ।
हर नज़्म में ,करता रहा बयां हालात वक़्त से ,
सुनता रहा वक़्त , खमोशी से हर फ़साने को ।
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658
घटता रहा वो कुछ , जो घटा ही नही ।
दिखता रहा वो कुछ, जो दिखा ही नही ।
कह गया वो हर बात , बस बात बात में ,
लिखता रहा वो कुछ, जो लिखा ही नही ।
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लिख गया वो हर बात, बस बात बात में ,
कहता रहा वो कुछ , जो कहा ही नही ।
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.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
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