रविवार, 14 अप्रैल 2019

मुक्तक 655/658

655
मैं तिनका ,  न सूखता  न डूबता रहा।
साथ किनारों के, तैरता बजूद सा रहा।
बहता ही रहा ,हालात के साथ हरदम ,
मैं वक़्त के थपेड़ों से ही, जूझता रहा ।
.....
 656
शिनाख़्त करता अगर , ज़ख्म जो तीरों की ।
उजड़ती ईमान नियत ,अपनो के जमीरों की ।
 हँसता ही रहा ,सहता ही रहा हर पीर को , 
कुछ ऐसी थी ,तासीर वफ़ा उन नजीरों की ।
...
वफ़ा/निष्ठा नज़ीर/उदहारण
....
667
जिंदगी रंग बदल के , आई कभी हँसाने को ।
आया रंग बदल के ,जमाना कभी रुलाने को ।
हर नज़्म में ,करता रहा बयां हालात वक़्त से ,
सुनता रहा वक़्त , खमोशी से हर फ़साने को ।
.... 
658
घटता रहा वो कुछ ,  जो घटा ही नही ।
दिखता रहा वो कुछ, जो दिखा ही नही ।
कह गया वो हर बात , बस बात बात में ,
लिखता रहा वो कुछ, जो लिखा ही नही ।
   ...

लिख गया वो हर बात, बस बात बात में ,

कहता रहा वो कुछ , जो कहा ही नही ।
.......
  .... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3

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