शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

किस किस के बक़ाब उतारोगे

किस किस के नक़ाब उतारोगे ।
 अपनों को ही गैरत से मारोगे ।
 लगा मुखोटे बैठे सिंहासन पर ,
 तुम अपनों से ही फिर हारोगे ।
   
..... 

राजनीत की कमान से मज़हब के तीर हटाना होगा ।
 राष्ट्र बचाना होगा मानबता को जगाना होगा ।। 
 चलते सब एक राह एक ही पथ पर ।
 पग से पग पग पग मिलाना होगा ।
 मुड़ती अपनी अपनी हर राहों को ।
 राष्ट्र भक्ति के चौराहे से मिलना होगा ।
  राष्ट्र बचाना होगा मानबता को जगाना होगा ।।
   ..

एक गुलामी की फिर आहट 
रहीं नही किसी को आज़ादी की चाहत
ईमान जहा बिकते हों 
महंगे सामान इंसान जहा सस्ते हों
हर मजहब के भगबान जहा बिकते हों
मुर्दों की सी बस्ती में
आज़ादी की सजती हर दिन अर्थी हो 
केसी आशा क्या अभिलाषा 
छाई चारों और निराशा
      .
हे माँ भारती

आतंक के साये में तू सिसक रही माँ।
सुलग रही छाती तेरी धधक रही माँ ।
तेरे वारिसो की रोटियां सिक रही माँ।
आजाद भगत सुभाष फिर जनना होगा माँ।
तब ही कोटि कोटि जन का भला होगा माँ।
 आजादी का अर्थ हरा भरा होगा माँ।
     .
मातृ भूमि तुझे प्रणाम

हे मातृभूमि तुझे प्रणाम ।
वीर शहीदों से ही हो मेरे काम ।।
मैं भी आ जाऊँ माँ तेरे काम ।
तेरी सीमाओं का रक्त से अपने अभिषेक करूँ ।।
तेरी माटी को अपने शीश धरूँ ।
प्रण प्राणों से हो रक्षा तेरी ऐसा एक काम करूँ ।।
तुझको तकती हर बुरी नजर के सीने में बारूद भरूँ ।
हे मातृ भूमि तुझे प्रणाम करूँ ।।
वीर शहीदों जेसे मैं भी कुछ काम करूँ ।
 तेरे कदमो में अपने प्रण प्राण धरूँ ।।
       .....जय हिन्द ......
         ....."निश्चल" विवेक दुबे.....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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