स्वार्थ की नीतियों तले ,
दब गए सारे परमार्थ ।
खाते फूँक फूँक कर,
हम अब वासी भात ।
.
शेष नही अब आज समर्पण,
होता है कुछ शर्तों पर गठबंधन ।
रिश्ते नाते सूखे तिनको से ,
एक चिंगारी से जलता घर आँगन ।
..
तेल देखो तेल की धार देखो ।
साँस साँस में व्यापार देखो ।
बचा नही रक्त शिराओं में ,
डूबी नैया किनार देखो ।
.
सियासत की बिसात पर ।
चलते चाल हर बात पर
प्यादों की क्या बात करें ,
राजा भी लगते दाव पर ।
..
जब जब हमने मुद्दे उठाये।
तब तब सबके हित आड़े आये ।
समझे न सब हमें या ,
हम सबको समझ न पाये।
.
मानवता हुई तार तार ऐसे ।
दनाब ने श्रंगार किया जैसे ।
सूर्पनखा खरदूषण घूम रहे वन वन,
राम नही अब त्रेता जैसे ।
प्रतिकार करें तो कैसे ।
..... "निश्चल" विवेक दुबे ....
दब गए सारे परमार्थ ।
खाते फूँक फूँक कर,
हम अब वासी भात ।
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शेष नही अब आज समर्पण,
होता है कुछ शर्तों पर गठबंधन ।
रिश्ते नाते सूखे तिनको से ,
एक चिंगारी से जलता घर आँगन ।
..
तेल देखो तेल की धार देखो ।
साँस साँस में व्यापार देखो ।
बचा नही रक्त शिराओं में ,
डूबी नैया किनार देखो ।
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सियासत की बिसात पर ।
चलते चाल हर बात पर
प्यादों की क्या बात करें ,
राजा भी लगते दाव पर ।
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जब जब हमने मुद्दे उठाये।
तब तब सबके हित आड़े आये ।
समझे न सब हमें या ,
हम सबको समझ न पाये।
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मानवता हुई तार तार ऐसे ।
दनाब ने श्रंगार किया जैसे ।
सूर्पनखा खरदूषण घूम रहे वन वन,
राम नही अब त्रेता जैसे ।
प्रतिकार करें तो कैसे ।
..... "निश्चल" विवेक दुबे ....
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