शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

स्वार्थ की नितियाँ

स्वार्थ की नीतियों तले ,
 दब गए सारे परमार्थ ।
 खाते फूँक फूँक कर,
 हम अब वासी भात ।
.
शेष नही अब आज समर्पण,
होता है कुछ शर्तों पर गठबंधन ।
 रिश्ते नाते सूखे तिनको से ,
एक चिंगारी से जलता घर आँगन ।
   ..
तेल देखो तेल की धार देखो ।
 साँस साँस में व्यापार देखो ।
  बचा नही रक्त शिराओं में ,
 डूबी नैया किनार देखो ।
.
सियासत की बिसात पर ।
  चलते चाल हर बात पर  
  प्यादों की क्या बात करें ,
  राजा भी लगते दाव पर ।
   ..
जब जब हमने मुद्दे उठाये।
तब तब सबके हित आड़े आये ।
 समझे न सब हमें या ,
 हम सबको समझ न पाये।
.
मानवता हुई तार तार ऐसे ।
 दनाब ने श्रंगार किया जैसे ।
  सूर्पनखा खरदूषण घूम रहे वन वन,
 राम नही अब त्रेता जैसे ।
 प्रतिकार करें तो कैसे ।
  ..... "निश्चल" विवेक दुबे ....
      

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