शनिवार, 30 दिसंबर 2017

सपने

  सपनो का सत्य कैसा।
 सत्य को डर कैसा ।
 चल निडर डगर पर,
 देखें होता है असर कैसा।
 ....
  देखना न सपने कभी ।
  सपने सच होते नही ।
 चल डगर पर कर्म की,
 कर्म निष्फ़ल होते नही ।

वो भी आस पुरानी है ।
प्यास अब बेमानी है ।
  कुछ अपने सपनो सँग 
 मृग मरीचिका सी जिंदगानी है।
...."निश्चल" विवेक...

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