सपनो का सत्य कैसा।
सत्य को डर कैसा ।
चल निडर डगर पर,
देखें होता है असर कैसा।
....
देखना न सपने कभी ।
सपने सच होते नही ।
चल डगर पर कर्म की,
कर्म निष्फ़ल होते नही ।
वो भी आस पुरानी है ।
प्यास अब बेमानी है ।
कुछ अपने सपनो सँग
मृग मरीचिका सी जिंदगानी है।
...."निश्चल" विवेक...
सत्य को डर कैसा ।
चल निडर डगर पर,
देखें होता है असर कैसा।
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देखना न सपने कभी ।
सपने सच होते नही ।
चल डगर पर कर्म की,
कर्म निष्फ़ल होते नही ।
वो भी आस पुरानी है ।
प्यास अब बेमानी है ।
कुछ अपने सपनो सँग
मृग मरीचिका सी जिंदगानी है।
...."निश्चल" विवेक...
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