हाँ समय बदलते देखा है ।
सूरज को ढ़लते देखा है ।
चन्दा को घटते देखा है ।
तारों को गिरते देखा है ।
हाँ समय बदलते देखा है ।
हिमगिरि पिघलते देखा है ।
सावन को जलते देखा है ।
सागर को जमते देखा है ।
नदियां को थमते देखा है ।
हाँ समय बदलते देखा है ।
खुशियों को छिनते देखा है ।
खुदगर्जी का मंजर देखा है ।
अपनों को बदलते देखा है ।
हाँ समय बदलते देखा है ।
नही कोई दस्तूर जहां ,
ऐसा दिल भी देखा है ।
नजरों का वो मंजर देखा है ।
उतरता पीठ में खंजर देखा है ।
हाँ समय बदलते देखा है ।
...."निश्चल" विवेक दुबे..
सूरज को ढ़लते देखा है ।
चन्दा को घटते देखा है ।
तारों को गिरते देखा है ।
हाँ समय बदलते देखा है ।
हिमगिरि पिघलते देखा है ।
सावन को जलते देखा है ।
सागर को जमते देखा है ।
नदियां को थमते देखा है ।
हाँ समय बदलते देखा है ।
खुशियों को छिनते देखा है ।
खुदगर्जी का मंजर देखा है ।
अपनों को बदलते देखा है ।
हाँ समय बदलते देखा है ।
नही कोई दस्तूर जहां ,
ऐसा दिल भी देखा है ।
नजरों का वो मंजर देखा है ।
उतरता पीठ में खंजर देखा है ।
हाँ समय बदलते देखा है ।
...."निश्चल" विवेक दुबे..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें