प्रश्न उनका हमसे ...
सपनों का भारत कैसा हो ?
एक प्रश्न हमारा उनसे ...
देख सकें स्वप्न यामनी संग,
बैसा आज सबेरा तो हो ।
.....
जो मिट रहा है उसे सम्हालो पहले ।
अन्न दाता को बचा लो पहले ।
अनिष्ट के संकेत साफ साफ हैं ।
पहले वो ...... फिर आप हैं ।
.....
आज महंगाई बनी डायन है ।
खाली थाली सूना आँगन है ।
बुझे बुझे दिये दीवाली के ,
सूना सूना अब सावन है ।
टूट रहे स्वप्न सितारों जैसे,
चन्दा से भी अनबन है ।
भोर तले सूरज ऐसा ,
जैसे करता संध्या बंदन है ।
निशा अंधियारी ऐसी छाई,
दिखती नही प्रभात किरण है ।
मंहगाई के बोझ तले दबे ऐसे ,
महँगा जीवन मरण सरल है ।
.....
फेंको तुम औद्योगिक कचरा खूब नदी समन्दर में ।
कहते हो गणपति विसर्जन करना है घर अंदर में ।
फैलता है प्रदूषण कुछ मूर्तियों के विसर्जन से ,
क्या अमृत घुला है उद्योगों के कचरा उत्सर्जन में ।
....
किसान कर रहे आत्महत्या , चढ़ा इतना ब्याज है ।
हैरान है अन्नदाता आसमां से भी अब गिरती गाज है ।
हर दिन होतीं बेपटरी रेलें तनिक नही अहसास है
ला रहे बुलेट ट्रेन वो ,इस पर उन पर नाज है ।
घूम घूम रहे हम दुनियाँ भर में,नही तनिक भी लाज है ।
40 हज़ार हैं पुनर्वास के इंतज़ार में अब भी ,
सरदार सरोवर पर होता जश्न-ऐ-आगाज़ आज है ।
सत्ता के मद में आती नही तनिक भी लाज़ है ।
विवेक दुबे "विवेक".......
सपनों का भारत कैसा हो ?
एक प्रश्न हमारा उनसे ...
देख सकें स्वप्न यामनी संग,
बैसा आज सबेरा तो हो ।
.....
जो मिट रहा है उसे सम्हालो पहले ।
अन्न दाता को बचा लो पहले ।
अनिष्ट के संकेत साफ साफ हैं ।
पहले वो ...... फिर आप हैं ।
.....
आज महंगाई बनी डायन है ।
खाली थाली सूना आँगन है ।
बुझे बुझे दिये दीवाली के ,
सूना सूना अब सावन है ।
टूट रहे स्वप्न सितारों जैसे,
चन्दा से भी अनबन है ।
भोर तले सूरज ऐसा ,
जैसे करता संध्या बंदन है ।
निशा अंधियारी ऐसी छाई,
दिखती नही प्रभात किरण है ।
मंहगाई के बोझ तले दबे ऐसे ,
महँगा जीवन मरण सरल है ।
.....
फेंको तुम औद्योगिक कचरा खूब नदी समन्दर में ।
कहते हो गणपति विसर्जन करना है घर अंदर में ।
फैलता है प्रदूषण कुछ मूर्तियों के विसर्जन से ,
क्या अमृत घुला है उद्योगों के कचरा उत्सर्जन में ।
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किसान कर रहे आत्महत्या , चढ़ा इतना ब्याज है ।
हैरान है अन्नदाता आसमां से भी अब गिरती गाज है ।
हर दिन होतीं बेपटरी रेलें तनिक नही अहसास है
ला रहे बुलेट ट्रेन वो ,इस पर उन पर नाज है ।
घूम घूम रहे हम दुनियाँ भर में,नही तनिक भी लाज है ।
40 हज़ार हैं पुनर्वास के इंतज़ार में अब भी ,
सरदार सरोवर पर होता जश्न-ऐ-आगाज़ आज है ।
सत्ता के मद में आती नही तनिक भी लाज़ है ।
विवेक दुबे "विवेक".......
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