शनिवार, 30 दिसंबर 2017

कुछ प्रश्न

प्रश्न उनका हमसे ...
 सपनों का भारत कैसा हो ? 

 एक प्रश्न हमारा उनसे ...

 देख सकें स्वप्न यामनी संग,
    बैसा आज सबेरा तो हो  ।
.....

जो मिट रहा है उसे सम्हालो पहले ।
 अन्न दाता को       बचा लो पहले ।
 अनिष्ट के संकेत     साफ साफ हैं ।
  पहले वो ......       फिर आप हैं ।
.....
आज महंगाई बनी डायन है ।
 खाली थाली सूना आँगन है ।
 बुझे बुझे दिये दीवाली के ,
 सूना सूना अब सावन है ।
  टूट रहे स्वप्न सितारों जैसे,
  चन्दा से भी अनबन है ।
  भोर तले सूरज ऐसा ,
 जैसे करता संध्या बंदन है ।
  निशा अंधियारी ऐसी छाई,
 दिखती नही प्रभात किरण है ।
 मंहगाई के बोझ तले दबे ऐसे ,
  महँगा जीवन मरण सरल है ।
.....
फेंको तुम औद्योगिक कचरा खूब नदी समन्दर में ।
 कहते हो गणपति विसर्जन करना है घर अंदर में ।
 फैलता है प्रदूषण कुछ मूर्तियों के विसर्जन से ,
 क्या अमृत घुला है उद्योगों के कचरा उत्सर्जन में ।
   .... 
किसान कर रहे आत्महत्या , चढ़ा इतना ब्याज है ।
 हैरान है अन्नदाता आसमां से भी अब गिरती गाज है ।
 हर दिन होतीं बेपटरी रेलें तनिक नही अहसास है  
ला रहे बुलेट ट्रेन वो ,इस पर उन पर नाज है । 
  घूम घूम रहे हम दुनियाँ भर में,नही तनिक भी लाज है । 
 40 हज़ार हैं पुनर्वास के इंतज़ार में अब भी ,
 सरदार सरोवर पर होता जश्न-ऐ-आगाज़ आज है ।
  सत्ता के मद में आती नही तनिक भी लाज़ है ।

विवेक दुबे "विवेक".......

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...