बुधवार, 27 दिसंबर 2017

हसरतें देतीं रहीं दस्तक

हसरतें देतीं रहीं दिल में दस्तक ।
समंदर का सफ़र रहा समंदर तक।

 मचलीं मौजें अरमान की कभी,
 बिखरीं साहिल पे बिखरने तक । 

 गुजरी ज़िंदगी अपने अंदाज़ में।
 गुजर गई ज़िंदगी गुजरने तक । 

 हारता न था जो कभी हालात से,
 लड़ता रहा खुद से वो जीतने तक।

 ज़श्न मनाएँ क्या जीत का वो,
 उम्र गुजर गई जब जीतने तक।

समंदर का सफ़र रहा समंदर तक।
...."निश्चल" विवेक दुबे...


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