मुड़ जाती हैं धाराएं भी ,
टकराकर पत्थरों से ।
बदल जाती है ज़िंदगी भी,
मिलकर अनजाने अपनों से। ।
.....
सफ़र ज़रा मुश्किल था ।
वो पत्थर नही मंज़िल था ।
निशां न थे कहीं क़दमों के ,
हौंसला फिर भी हाँसिल था ।
....
वादों के शूलों से ज़ख्म क़ुदरते हैं ।
वो कुछ यूँ मेरे जख्म उकेरते हैं।
....
मानस की सहना नियति , सहती अत्याचार ।
चुप रहती सहती सतत,करे नहीं प्रतिकार ।।
....."निश्चल"विवेक दुबे...
टकराकर पत्थरों से ।
बदल जाती है ज़िंदगी भी,
मिलकर अनजाने अपनों से। ।
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सफ़र ज़रा मुश्किल था ।
वो पत्थर नही मंज़िल था ।
निशां न थे कहीं क़दमों के ,
हौंसला फिर भी हाँसिल था ।
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वादों के शूलों से ज़ख्म क़ुदरते हैं ।
वो कुछ यूँ मेरे जख्म उकेरते हैं।
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मानस की सहना नियति , सहती अत्याचार ।
चुप रहती सहती सतत,करे नहीं प्रतिकार ।।
....."निश्चल"विवेक दुबे...
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