शनिवार, 30 दिसंबर 2017

व्यवस्था

   *ॐ* हृदय रखिए ,
 *ॐ* करे शुभ काज ।
 *ॐ* श्रीगणेश है,
 *ॐ* शिव सरकार ।
  .....।

 नैतिकता पढ़ी कभी किताबों में ।
  नैतिकता मिलती नही बाज़ारों में ।
  सुनते आए किस्से बड़े सयानों से,
  यह मिलती घर आँगन चौवरो में ।
  ...... 
 बून्द चली मिलने सागर तन से ।
 बरस उठी बदली बन गगन से ।
 क्षितरी बार बार बिन साजन के ।
 बहती चली फिर नदिया बन के ।
 एक दिन *बून्द प्यार की* जा पहुँची ,
 मिलने साजन सागर के तन से ।
....... 
 तन्हा वक़्त छीन रहा बहुत कुछ ।
 हँसी लेकर वक़्त दे रहा सब कुछ ।
  .....
राह चलत कभी ऐसा भी हो जात ।
 *तनु* सो सरल मित्र मिल जात।
 करत सदा सम्मान हृदय मन से ,
 जो गहरी हृदय मन पैठ जमात ।
  .....
 वो लालसा बड़ी न्यारी जागी थी ।
 सौंपी अपने घर की चाबी थी ।
 लालच में आकर हमने जिसको ।
 उसने ही की चोरों की सरदारी थी ।
  ....
जीवन रेखा रेल भी हारी है ।
 यह जाने कैसी लाचारी है ।
 हो रही बे-पटरी बेचारी है ।
 राजशाही व्यवस्था पर भारी है ।
....."निश्चल" विवेक दुबे..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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