*ॐ* हृदय रखिए ,
*ॐ* करे शुभ काज ।
*ॐ* श्रीगणेश है,
*ॐ* शिव सरकार ।
.....।
नैतिकता पढ़ी कभी किताबों में ।
नैतिकता मिलती नही बाज़ारों में ।
सुनते आए किस्से बड़े सयानों से,
यह मिलती घर आँगन चौवरो में ।
......
बून्द चली मिलने सागर तन से ।
बरस उठी बदली बन गगन से ।
क्षितरी बार बार बिन साजन के ।
बहती चली फिर नदिया बन के ।
एक दिन *बून्द प्यार की* जा पहुँची ,
मिलने साजन सागर के तन से ।
.......
तन्हा वक़्त छीन रहा बहुत कुछ ।
हँसी लेकर वक़्त दे रहा सब कुछ ।
.....
राह चलत कभी ऐसा भी हो जात ।
*तनु* सो सरल मित्र मिल जात।
करत सदा सम्मान हृदय मन से ,
जो गहरी हृदय मन पैठ जमात ।
.....
वो लालसा बड़ी न्यारी जागी थी ।
सौंपी अपने घर की चाबी थी ।
लालच में आकर हमने जिसको ।
उसने ही की चोरों की सरदारी थी ।
....
जीवन रेखा रेल भी हारी है ।
यह जाने कैसी लाचारी है ।
हो रही बे-पटरी बेचारी है ।
राजशाही व्यवस्था पर भारी है ।
....."निश्चल" विवेक दुबे..
*ॐ* करे शुभ काज ।
*ॐ* श्रीगणेश है,
*ॐ* शिव सरकार ।
.....।
नैतिकता पढ़ी कभी किताबों में ।
नैतिकता मिलती नही बाज़ारों में ।
सुनते आए किस्से बड़े सयानों से,
यह मिलती घर आँगन चौवरो में ।
......
बून्द चली मिलने सागर तन से ।
बरस उठी बदली बन गगन से ।
क्षितरी बार बार बिन साजन के ।
बहती चली फिर नदिया बन के ।
एक दिन *बून्द प्यार की* जा पहुँची ,
मिलने साजन सागर के तन से ।
.......
तन्हा वक़्त छीन रहा बहुत कुछ ।
हँसी लेकर वक़्त दे रहा सब कुछ ।
.....
राह चलत कभी ऐसा भी हो जात ।
*तनु* सो सरल मित्र मिल जात।
करत सदा सम्मान हृदय मन से ,
जो गहरी हृदय मन पैठ जमात ।
.....
वो लालसा बड़ी न्यारी जागी थी ।
सौंपी अपने घर की चाबी थी ।
लालच में आकर हमने जिसको ।
उसने ही की चोरों की सरदारी थी ।
....
जीवन रेखा रेल भी हारी है ।
यह जाने कैसी लाचारी है ।
हो रही बे-पटरी बेचारी है ।
राजशाही व्यवस्था पर भारी है ।
....."निश्चल" विवेक दुबे..
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