शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

उम्र ज्यों पकती है

 उम्र ज्यों पकती है,तन तपिश घटती है।
  हाँ इस पड़ाव पर, ठंड तो लगती है ।
 ....
   उम्र पकती रही रौनकें घटती रहीं।
   तजुर्बा-ऐ-ताव में हयात तपती रही। 
         
हयात (जीवन ज़िन्दगी)
...
  उम्र के इस पड़ाव पर।
  इश्क़ के अलाव पर।
      सिकतीं यादें प्यार की,
      अहसास के कड़ाव पर ।
....
  यादों में बिखर जाते हैं ।
  रिश्ते यूँ निखर जाते हैं ।
         कटती उम्र ख़यालों सँग ,
          जो आगोश भर जाते हैं ।
 ....
  इस काँटिल छाँव तले ।
  सोचूं कुछ सुबह तले ।
       क्या खोया क्या पाया,
       जीवन की साँझ ढले।
..
    हिचकिचाहट की भी आहट है।
     "निश्चल" यूँ मुझे इसकी आदत है।
   ... विवेक दुबे "निश्चल"@.....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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