17
क्रोध कबहुँ न कीजिए , क्रोध पतन का मूल ।
क्रोध जो उपजे आपमे, नष्ट होय बुद्धि समूल ।
18
रस रहे न स्वाद रहे , बिन मौसम जो फ़ल आए ।
बिन मौसम की बादरी, नीर भरे उड़ जाए ।
19
उड़ जा कागा मुँडेर से , दे पिया सन्देशा जाए ।
कहियो तोरी याद में , नैन सरिता हो जाए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
क्रोध कबहुँ न कीजिए , क्रोध पतन का मूल ।
क्रोध जो उपजे आपमे, नष्ट होय बुद्धि समूल ।
18
रस रहे न स्वाद रहे , बिन मौसम जो फ़ल आए ।
बिन मौसम की बादरी, नीर भरे उड़ जाए ।
19
उड़ जा कागा मुँडेर से , दे पिया सन्देशा जाए ।
कहियो तोरी याद में , नैन सरिता हो जाए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें