गुरुवार, 12 जुलाई 2018

दोहे 17 से 19

17
क्रोध कबहुँ न कीजिए , क्रोध पतन का मूल ।
 क्रोध जो उपजे आपमे, नष्ट होय बुद्धि समूल ।
18
रस रहे न स्वाद रहे , बिन मौसम जो फ़ल आए ।
 बिन मौसम की बादरी,  नीर भरे उड़ जाए । 
 19
 उड़ जा कागा मुँडेर से , दे पिया  सन्देशा जाए ।
 कहियो तोरी याद में , नैन  सरिता हो जाए । 

  
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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