एक प्रयास ग़जल का
काफ़िया --- आर
रदीफ़ ----- है
बह्र ------212×4
आदमी आदमी का गुनहगार है ।
आदमियत हुई आज शर्मसार है ।
है नहीं मुरब्बत दिल में कोई ,
इस जहां में सभी आज बे-जार है ।
वा-बस्ता साथ में है सभी आज भी,
बीच सब के हुआ सिर्फ इक़रार है ।
हो रहे हैं ख़ुश वो अपने दांव पर ,
मानते हैं जिसे जीत वो हार है ।
जीतने के लिए खेलकर दांव को ,
हार से आदमी का यूं इक़रार है ।
जीतेगा अब नहीं तो अब वो ,
"निश्चल" को क्यूं आज इख़्तियार है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
काफ़िया --- आर
रदीफ़ ----- है
बह्र ------212×4
आदमी आदमी का गुनहगार है ।
आदमियत हुई आज शर्मसार है ।
है नहीं मुरब्बत दिल में कोई ,
इस जहां में सभी आज बे-जार है ।
वा-बस्ता साथ में है सभी आज भी,
बीच सब के हुआ सिर्फ इक़रार है ।
हो रहे हैं ख़ुश वो अपने दांव पर ,
मानते हैं जिसे जीत वो हार है ।
जीतने के लिए खेलकर दांव को ,
हार से आदमी का यूं इक़रार है ।
जीतेगा अब नहीं तो अब वो ,
"निश्चल" को क्यूं आज इख़्तियार है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
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