गुरुवार, 12 जुलाई 2018

दोहे 24 से 26

24
नयन समाये हैं साजन, मन बन आस चकोर ।
 दूर देश प्रियवर है,मन तड़फत बिन तोर ।
25
 सजनी साधे बड़ी आस,अंतर मन भरी प्यास ।
 डोले मन पिया मिलन, राह तके भरे नयन ।
26
 आओ प्रियवर देर भई, साँझ भई भोर गई।
 रजनी सँग चँदा आया, तूने मोहे बिसराया ।
   ..... विवेक दुबे "निश्चल"..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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