शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

आदमी ग़जल



काफ़िया --- आर
 रदीफ़  ----- हैं

आदमी आदमी के गुनहगार हैं ।
 आदमी आज यूँ भी वफ़ादार हैं ।

है नही मुरब्बत दिल मे कोई  ,
इस जहां में सभी आज बे-जार हैं ।

वा-बस्ता साथ में है सभी आज भी,
बीच सब के हुए सिर्फ इक़रार हैं ।

हो रहे हैं ख़ुश वो अपने दांव पर ,
मानते है जिन्हें जीत वो हार हैं ।

जीतने के लिए खेलकर दांव को ,
हार से आदमी के युं इक़रार हैं ।

जीतेगें अब नही तो अब वो ,
"निश्चल" के क्युं आज इख़्तियार हैं ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@......

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