काफ़िया --- आर
रदीफ़ ----- हैं
आदमी आदमी के गुनहगार हैं ।
आदमी आज यूँ भी वफ़ादार हैं ।
है नही मुरब्बत दिल मे कोई ,
इस जहां में सभी आज बे-जार हैं ।
वा-बस्ता साथ में है सभी आज भी,
बीच सब के हुए सिर्फ इक़रार हैं ।
हो रहे हैं ख़ुश वो अपने दांव पर ,
मानते है जिन्हें जीत वो हार हैं ।
जीतने के लिए खेलकर दांव को ,
हार से आदमी के युं इक़रार हैं ।
जीतेगें अब नही तो अब वो ,
"निश्चल" के क्युं आज इख़्तियार हैं ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@......
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