गुरुवार, 12 जुलाई 2018

दोहे 5 से 10

6
समय कबहुँ न टालिए, समय न वापस आए ।
बीती बात बिसारिए, बीत गया सो बिता जाए ।
7
रात बड़ी है साँवली ,लेत प्रभा की ओट ।
आपने बिस्तार से,वा आपन को है खोत।
8
दिनकर ही दिन चढ़त है,दिनकर ही ढल जाए ।
यौवन जो काट के,  ज़रा गले लिपटाए ।
9
सहना मानस की नियति,सहती अत्याचार।
 बैठी है चुपचाप से, करे नहीं प्रतिकार।।

10
 सहना नियति मानस की, सहती अत्याचार ।
 इच्छा न प्रतिकार की, बैठी बस चुप चाप ।
 . .... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5

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