इतना होता हुँ क्युं मैं,जमाने का दीवाना ।
अपने ही अंदाज़ से,चलाना चाहे जमाना ।
ठूंसकर अल्फ़ाज़ अपने को मेरे मुहँ में ,
कहता है मुझसे ,अब तू इन्हें गुनगुना ।
वो मतला ना ही मक़ता ही रहा कोई ,
जो चाहा था मैंने आप खुद को सुनना ।
गुनगुनाया था मैंने जिसे अपने वास्ते ।
न चाहा था कभी ज़माने को सुनाना ।
कहती दुनियाँ कुछ कहो अपने अंदाज़ में ।
बनाती है मेरे अंदाज़ से फिर एक फ़साना ।
"निश्चल" न रह सका मैं अपने वास्ते ,
करता रहा जमाना यूँ मुझे बेगाना ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
अपने ही अंदाज़ से,चलाना चाहे जमाना ।
ठूंसकर अल्फ़ाज़ अपने को मेरे मुहँ में ,
कहता है मुझसे ,अब तू इन्हें गुनगुना ।
वो मतला ना ही मक़ता ही रहा कोई ,
जो चाहा था मैंने आप खुद को सुनना ।
गुनगुनाया था मैंने जिसे अपने वास्ते ।
न चाहा था कभी ज़माने को सुनाना ।
कहती दुनियाँ कुछ कहो अपने अंदाज़ में ।
बनाती है मेरे अंदाज़ से फिर एक फ़साना ।
"निश्चल" न रह सका मैं अपने वास्ते ,
करता रहा जमाना यूँ मुझे बेगाना ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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