बहुत कुछ कहा ,कुछ कह गया ।
हर्फ़ हर्फ़ किताबों से, बह गया ।
पलटता रहा सफ़े जिंदगी के ,
हर हुनर निग़ाहों में रह गया ।
देखता रहा मासूमियत चेहरा ,
और उनवान उम्र ढह गया ।(भूमिका)
लाया ना कोई सच जुबां पर ,
हर ज़ुल्म इंसाफ़ सह गया ।
कर ना सकी बयां जुबां जिसे ,
"निश्चल" वो जज्बात हर्फ़ कह गया ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
हर्फ़ हर्फ़ किताबों से, बह गया ।
पलटता रहा सफ़े जिंदगी के ,
हर हुनर निग़ाहों में रह गया ।
देखता रहा मासूमियत चेहरा ,
और उनवान उम्र ढह गया ।(भूमिका)
लाया ना कोई सच जुबां पर ,
हर ज़ुल्म इंसाफ़ सह गया ।
कर ना सकी बयां जुबां जिसे ,
"निश्चल" वो जज्बात हर्फ़ कह गया ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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