शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

कुछ कह गया

बहुत कुछ कहा ,कुछ कह गया ।
हर्फ़ हर्फ़ किताबों से, बह गया ।

पलटता रहा सफ़े जिंदगी के ,
हर हुनर निग़ाहों में रह गया ।

देखता रहा मासूमियत चेहरा ,
और उनवान उम्र ढह गया ।(भूमिका)

 लाया ना कोई सच जुबां पर ,
 हर ज़ुल्म इंसाफ़ सह गया ।

   कर ना सकी बयां जुबां जिसे ,
 "निश्चल" वो जज्बात हर्फ़ कह गया ।

 .... विवेक दुबे"निश्चल"@....

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