गुरुवार, 27 सितंबर 2018

ये मैं हूं

ये मैं हूँ  या  वो मैं हूँ ।
वो मैं हूँ  के  जो मैं हूँ ।

 जो मैं हूँ  क्या वो मैं हूँ ।
 वो मैं हूँ  क्या जो मैं हूँ ।

गुंजित मन प्रश्न यही ,
कुछ छूट रहा यही कहीं ।

कुछ पा जाने की चाहत में ,
पाया ठौर नही कहीं ।

अभिलाषा के दिनकर सँग ,
प्रतिफ़ल की साँझ तले ।

ज़ीवन के इस परिपथ पर ,
ज़ीवन की हर साँझ ढ़ले ।

कुछ खोता हूँ, कुछ पाता हूँ ।
कुछ लाता हूँ, कुछ दे आता हूँ ।

पर प्रश्न यही एक मन मे , 
क्या पाता हूँ , क्या खो आता हूँ ।

इस एकाकी जीवन पथ पर ,
एकाकी ही तो आता जाता हूँ ।

एकाकी ही तो आता जाता हूँ ।



.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...