ये मैं हूँ या वो मैं हूँ ।
वो मैं हूँ के जो मैं हूँ ।
जो मैं हूँ क्या वो मैं हूँ ।
वो मैं हूँ क्या जो मैं हूँ ।
गुंजित मन प्रश्न यही ,
कुछ छूट रहा यही कहीं ।
कुछ पा जाने की चाहत में ,
पाया ठौर नही कहीं ।
अभिलाषा के दिनकर सँग ,
प्रतिफ़ल की साँझ तले ।
ज़ीवन के इस परिपथ पर ,
ज़ीवन की हर साँझ ढ़ले ।
कुछ खोता हूँ, कुछ पाता हूँ ।
कुछ लाता हूँ, कुछ दे आता हूँ ।
पर प्रश्न यही एक मन मे ,
क्या पाता हूँ , क्या खो आता हूँ ।
इस एकाकी जीवन पथ पर ,
एकाकी ही तो आता जाता हूँ ।
एकाकी ही तो आता जाता हूँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
वो मैं हूँ के जो मैं हूँ ।
जो मैं हूँ क्या वो मैं हूँ ।
वो मैं हूँ क्या जो मैं हूँ ।
गुंजित मन प्रश्न यही ,
कुछ छूट रहा यही कहीं ।
कुछ पा जाने की चाहत में ,
पाया ठौर नही कहीं ।
अभिलाषा के दिनकर सँग ,
प्रतिफ़ल की साँझ तले ।
ज़ीवन के इस परिपथ पर ,
ज़ीवन की हर साँझ ढ़ले ।
कुछ खोता हूँ, कुछ पाता हूँ ।
कुछ लाता हूँ, कुछ दे आता हूँ ।
पर प्रश्न यही एक मन मे ,
क्या पाता हूँ , क्या खो आता हूँ ।
इस एकाकी जीवन पथ पर ,
एकाकी ही तो आता जाता हूँ ।
एकाकी ही तो आता जाता हूँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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