गुरुवार, 27 सितंबर 2018

कविता

यह रूह बिखर जाने दो ।
ये ज़िस्म सँवर जाने दो ।
इन हसरतों की चाहत में ,
एक उम्र गुजर जाने दो ।
..
बजन कुछ बढ़ जाने दो ।
हसरत ज़िगर भर जाने दो ।
है रूह माफ़िक हवा के ,
संग रूह कर जाने दो ।
...
नर्म निग़ाह खेल दिखाने दो ।
फूल फूल मिल जाने दो ।
बिखरते जज़्बात हवा में ,
फ़िज़ाओं में घुल जाने दो ।
....
थमते नही हालात हाथ हसरतों के ।
सजते नही आज हाथ शोहरातों के ।
कैसी है कशमकश  ये वक़्त की ,
होते नहीं आज़ाद हाथ मोहलतों के ।

.... विवेक दुबे"निश्चल@..


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