एक मुक़ाम वो भी था ।
एक मुक़ाम यह भी है ।
वो बड़ा आसान था ।
यह नही आसान है ।
लड़ते जंग कदम कदम ,
जिंदगी बनी इम्तेहान है ।
रितते रहे निग़ाहों से ,
फिर जाने क्या गुमान है ।
है नही यह घर किसी का ।
हर शय यहां मेहमान है ।
...विवेक दुबे निश्चल@.
एक मुक़ाम यह भी है ।
वो बड़ा आसान था ।
यह नही आसान है ।
लड़ते जंग कदम कदम ,
जिंदगी बनी इम्तेहान है ।
रितते रहे निग़ाहों से ,
फिर जाने क्या गुमान है ।
है नही यह घर किसी का ।
हर शय यहां मेहमान है ।
...विवेक दुबे निश्चल@.
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