सोमवार, 24 सितंबर 2018

रुठकर लफ्ज़ मेरा

रूठकर लफ्ज़ मेरा कहाँ जाएगा ।
    जो है मेरा वो यहाँ आएगा ।

छाएगा जुबां पे नाज से वो ,
एक दिन नज़्म मेरी जहां गाएगा ।

उठेगी हर निग़ाह हसरत से ,
निग़ाह चाहत सा मुक़ा पाएगा ।

तैरते अल्फ़ाज़ समंदर की ख़ातिर,
साथ अपने दरिया बहा लाएगा ।

सर्द रातो में चाहत तपिश की  ,
गर्म अल्फ़ाज़ सा धुआँ छाएगा ।

लिए मुक़ाम निग़ाह में कोई ,
"निश्चल"मुक़ाम तक चल जाएगा ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(145)

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