मेरे फ़लसफ़े का भी सफ़ा होता ।
मुंसिफ मुझसे यूँ ना ख़फ़ा होता ।
...
उसे जिंदगी से मोहलत नही मिली ।
मुझे जिंदगी से तोहमत यही मिली ।
....
उसे जिंदगी से मोहलत यदि मिलती ।
मुझे जिंदगी से तोहमत नही मिलती ।
....
झूँठ नही तनिक भी, है यही सही ।
जिसे कहा सही, है वही सही नही ।
..
आँख बंद करने से अंधेरा घटता नहीं ।
आता भोर का सबेरा अंधेरा टिकता नही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
मुंसिफ मुझसे यूँ ना ख़फ़ा होता ।
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उसे जिंदगी से मोहलत नही मिली ।
मुझे जिंदगी से तोहमत यही मिली ।
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उसे जिंदगी से मोहलत यदि मिलती ।
मुझे जिंदगी से तोहमत नही मिलती ।
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झूँठ नही तनिक भी, है यही सही ।
जिसे कहा सही, है वही सही नही ।
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आँख बंद करने से अंधेरा घटता नहीं ।
आता भोर का सबेरा अंधेरा टिकता नही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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