58
उजली चादर ज्ञान की,
मेले मन को खोय ।
बीज बीज ज्यों छान के,
धरती किसान बोय ।
59
फूटत अंकुर बीज का,
गर्भ धरा का चीर ।
फैलत है वो ज्ञान भी ,
बहकर हृदय नीर ।
60
बीत गया दिन आज का ,
बाँकी कल की आस ।
स्वाति नीर की बूंद को ,
जा चातक की प्यास ।
61
भानू लाया भोर को ,
लिए साँझ की आस ।
साँझ बिसारे भोर को ,
लिए सितारे साथ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6
उजली चादर ज्ञान की,
मेले मन को खोय ।
बीज बीज ज्यों छान के,
धरती किसान बोय ।
59
फूटत अंकुर बीज का,
गर्भ धरा का चीर ।
फैलत है वो ज्ञान भी ,
बहकर हृदय नीर ।
60
बीत गया दिन आज का ,
बाँकी कल की आस ।
स्वाति नीर की बूंद को ,
जा चातक की प्यास ।
61
भानू लाया भोर को ,
लिए साँझ की आस ।
साँझ बिसारे भोर को ,
लिए सितारे साथ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6
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