गुरुवार, 27 सितंबर 2018

दोहे

58
उजली चादर ज्ञान की,
              मेले मन को खोय ।
बीज बीज ज्यों छान के,
             धरती किसान बोय ।
59
फूटत अंकुर बीज का,
            गर्भ धरा का चीर ।
 फैलत है वो ज्ञान भी ,
            बहकर हृदय नीर ।
60
बीत गया दिन आज का ,
          बाँकी कल की आस ।
 स्वाति नीर की बूंद को ,
         जा चातक की प्यास ।
61
 भानू लाया भोर को ,
          लिए साँझ की आस ।
 साँझ बिसारे भोर को ,
          लिए सितारे साथ ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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