गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

मुताक 903/910

 903

रिश्ते खून के कभी दूर नही होते ।

रिश्तों में कभी क़सूर नही होते ।

झुकतीं है शाखें फूलों के बजन से,

दरख़्तों को गुमां मंजूर नही होते ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

904

दर-ओ-दीवारों के नक्स बदलते हैं ।

मेरे अपनों के ही अक़्स बदलते हैं ।

थिरकते है अपनी ही साज-ओ-आवाज़ पे,

यूँ जिंदगीयों के अब रक़्स बदलते हैं ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

905

बस एक बात ये ही सही है ।

हर बात बस दिल से कही है ।

हो रहा क्युं खुदगर्ज़ जमाना ,

क्यूँ अपनों में दूरियाँ हो रहीं है ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

 906

चलते रहे सँग वो दीवाने बहाने से ।

 रूह लिए सँग दो जिस्म पुराने से ।

 खिलते रहे अश्क़ फ़ूल बनकर ,

 मिलकर अपनी ही पहचानों से ।

...निश्चल..

907

 रुख हवा के साथ चला चल ।

खुद फ़िज़ा से हाथ मिला चल ।

बहकर सँग दर्या की धार में ,

जीत ज़ज्बात को दिला चल ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

908

सहज सरल हरदम दिखना होगा ।

जीवन को जीवन में टिकना होगा ।

उजली आशाओं के उजियारो में ,

स्वप्नों को भोर तले बिकना होगा ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@..

909

मेरे गुनाहों की मुझे यूँ सज़ा न देना ।

मेरे अपनो से तू कभी जुदा न देना ।

मिटती नही लकीरें हाथ से रिश्तों की,

अक़्स रिश्ते नातों के मिटा न देना ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@..

 910

वो जो मेरे साया से ।

 सँग चलते छांया से।

छूट रहे है कुछ पीछे  ,

कुछ अपना पराया से ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@...


डायरी 7

Blogpost 11/2/21


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