921
उलझे से दौर-ए-जिंदगी को सुलझाता कौन है ।
देखे इन ज़ख्म उलझनों को सहलाता कौन है ।
है जिंदगी में ग़म और ख़ुशी यक़ीनन साथ ही ,
देखते है ग़म-ए-तपिश में साथ निभाता कौन है ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@..
921
उलझते दौर जिंदगी को देखें सुलझाता कौन है ।
देखे इन ज़ख्म उलझनों को सहलाता कौन है ।
है जिंदगी में ग़म और ख़ुशी यक़ीनन साथ ही ,
देखते है ग़म-ए-तपिश में साथ निभाता कौन है ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@..
922
सुनता नही कोई पर मैं सुनाता रहा ।
महफिलों में अकेला ही मैं गाता रहा ।
पालकर रंजिशें जमाने से जमाने भर की,
जश्न अपने आप में मैं मनाता रहा ।
....."निश्चल"@....
गैर अपने आप को अपनो मैं बताता रहा ।
923
वो शोहरतें पुरानी ।
ये दौलते निशानी ।
चाहतों की चाह में ,
ये दुनियाँ दिवानी ।
हो सकीं न मुकम्मिल,
और कट गई जवानी ।
जिंदगी के सफ़र की ,
सबकी यही कहानी ।
..."निश्चल"@.....
वो शोहरतें पुरानी ।
ये दौलते निशानी ।
चाहतों की चाह में ,
कट गई जवानी ।
हो सकीं न मुकम्मिल,
फिर भी दुनियाँ दिवानी ।
जिंदगी के सफ़र की ,
सबकी यही कहानी ।
..."निश्चल"@.....
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