गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

मुक्तक 921/923

 921

उलझे से दौर-ए-जिंदगी को सुलझाता कौन है ।

देखे इन ज़ख्म उलझनों को सहलाता कौन है ।

है जिंदगी में ग़म और ख़ुशी यक़ीनन साथ ही ,

देखते है ग़म-ए-तपिश में साथ निभाता कौन है ।

......विवेक दुबे"निश्चल"@..

921

उलझते दौर जिंदगी को देखें सुलझाता कौन है ।

देखे इन ज़ख्म उलझनों को सहलाता कौन है ।

है जिंदगी में ग़म और ख़ुशी यक़ीनन साथ ही ,

देखते है ग़म-ए-तपिश में साथ निभाता कौन है ।

......विवेक दुबे"निश्चल"@..

922

सुनता नही कोई पर मैं सुनाता रहा ।

महफिलों में अकेला ही मैं गाता रहा ।

पालकर रंजिशें जमाने से जमाने भर की,

जश्न अपने आप में मैं मनाता रहा ।

       ....."निश्चल"@....


गैर अपने आप को अपनो मैं बताता रहा ।

923

वो शोहरतें पुरानी ।

ये दौलते निशानी ।

चाहतों की चाह में ,

 ये दुनियाँ दिवानी ।

हो सकीं न मुकम्मिल,

और कट गई जवानी ।

जिंदगी के सफ़र की ,

सबकी यही कहानी ।

..."निश्चल"@.....


वो शोहरतें पुरानी ।

ये दौलते निशानी ।


चाहतों की चाह में ,

 कट गई जवानी ।

 

हो सकीं न मुकम्मिल,

फिर भी दुनियाँ दिवानी ।


जिंदगी के सफ़र की ,

सबकी यही कहानी ।

..."निश्चल"@.....


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