शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

मुक्तक 942/46

 942

कुछ ऐसे कमज़र्फ देखे है ।

कुछ ऐसे नर्म हर्फ़ देखे है ।

जो बदलते रहे मायने अपने ,

कुछ रिश्तों में ऐसे फ़र्क़ देखे है ।

.... "निश्चल"@...

943

हर  जिंदगी में सबक जरूरी है ।

बगैर सबक के जिंदगी अधूरी है ।

सिखा के सबक उसूल जिंदगी के ,

अपनो के बीच वो घटाते दूरी है ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@....

944

 मैं अपना दर्द लिखूँ कैसे ।

 खुशियों से गैर दिखूँ कैसे ।

 रिश्तों के इस व्यापार में ,

 बे-तोल बे-मोल बिकूँ कैसे ।

..... *विवेक दुबे"निश्चल"*@...

945

खो जाऊंगा जब मैं आज के आज में ।

खोज लेना मुझे अपनी याद के साज में ।

गुनगुनाउंगा सरगम बन सांस अहसास में ,

पुकारना मुझे अपने दिल की आवाज़ में ।

..."निश्चल"....

946

ये जिंदगी कब कहाँ गुज़र जाती है ।

एक उम्र क्यों समझ नही पाती है ।

टूटते हैं अक़्स ख़्वाब के आइनों में,

क़तरा शक़्ल तन्हा नजर आती है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

डायरी 7

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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