942
कुछ ऐसे कमज़र्फ देखे है ।
कुछ ऐसे नर्म हर्फ़ देखे है ।
जो बदलते रहे मायने अपने ,
कुछ रिश्तों में ऐसे फ़र्क़ देखे है ।
.... "निश्चल"@...
943
हर जिंदगी में सबक जरूरी है ।
बगैर सबक के जिंदगी अधूरी है ।
सिखा के सबक उसूल जिंदगी के ,
अपनो के बीच वो घटाते दूरी है ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
944
मैं अपना दर्द लिखूँ कैसे ।
खुशियों से गैर दिखूँ कैसे ।
रिश्तों के इस व्यापार में ,
बे-तोल बे-मोल बिकूँ कैसे ।
..... *विवेक दुबे"निश्चल"*@...
945
खो जाऊंगा जब मैं आज के आज में ।
खोज लेना मुझे अपनी याद के साज में ।
गुनगुनाउंगा सरगम बन सांस अहसास में ,
पुकारना मुझे अपने दिल की आवाज़ में ।
..."निश्चल"....
946
ये जिंदगी कब कहाँ गुज़र जाती है ।
एक उम्र क्यों समझ नही पाती है ।
टूटते हैं अक़्स ख़्वाब के आइनों में,
क़तरा शक़्ल तन्हा नजर आती है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 7
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