शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

मुक्तक 927/31

 927

जीवन को पौरुष से भरना होगा ।

साँस साँस में साहस धरना होगा ।

नही कही अब चूक जरा भी हो ,

तुझको पूरे की ख़ातिर लड़ना होगा ।

...."निश्चल"@..

928

होंसले नये जगाने होंगे ।

फिर कदम उठाने होंगे ।

गढ़कर मंजिल एक नई ,

सफ़र नये सजाने होंगे ।

चलता चल रहा पे तू राही ,

राह के कही तो मुहाने होंगे ।

न रख अरमान अपनो से ,

गैर ही तेरे दीवाने होंगे ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@..

929

शायद वक़्त की अब यही चाहत होगी ।

होगा वो जिसकी मुझे न आदत होगी ।

जीत लूँगा मैं फिर भी अपने आपको ,

हारने की न मुझे कोई मलालत होगी ।

......विवेक दुबे"निश्चल"@...

930

ख़ुद से ख़ुद फिर अब मुलाक़ात करते है।

चल ज़िंदगी फिर नई शुरुआत करते है।रहे मन ममोश खामोश साथ चलकर भी,

अब दिल-ओ-जज़्बात से बात करते है ।

चल ज़िंदगी फिर नई शुरुआत करते है ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@....

931

 तम हरने की आशा में ,

 नित एक दीप जलाता मैं ।

 चाहे न हो उजियारा भानू सा ,

 किरणों से आशा पाता मैं ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 7

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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