शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

मुक्तक924 26

 924

गुजर गई जिंदगी तब ख्याल आया है ।

अधूरे से ख्वाबो का मलाल आया है ।

चलती रही साथ चाहतें हसरतें लेकर ,

रूह जुस्तजू पर अब जमाल आया है ।

         ...."निश्चल"@..

925

एक नमी निगाहों की,

अपनो से कभी रूठने नही देती ।

एक नमी निगाहों की, 

ज़ख्म बात के सूखने नही देती ।

कर चलती है साफ़, 

राह डगर निग़ाह आइने की तरह ,

 होंसला मंज़िल से पहले ,

कभी कहीं टूटने नही देती ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@......

926

      स्वर रूठ रहे है शब्दों के,

कैसे मैं कोई गीत लिखूँ ।

मोल नही कोई अर्थो का ,

कैसे छंदों की रीत लिखूँ ।

नित निज स्वार्थ तले  ,

निज की अभिलाषा में ,

बदल रही परिभाषा अपनो की,

कैसे अपनो को मीत लिखूँ ।

...."निश्चल"@...

डायरी 7


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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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