924
गुजर गई जिंदगी तब ख्याल आया है ।
अधूरे से ख्वाबो का मलाल आया है ।
चलती रही साथ चाहतें हसरतें लेकर ,
रूह जुस्तजू पर अब जमाल आया है ।
...."निश्चल"@..
925
एक नमी निगाहों की,
अपनो से कभी रूठने नही देती ।
एक नमी निगाहों की,
ज़ख्म बात के सूखने नही देती ।
कर चलती है साफ़,
राह डगर निग़ाह आइने की तरह ,
होंसला मंज़िल से पहले ,
कभी कहीं टूटने नही देती ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@......
926
स्वर रूठ रहे है शब्दों के,
कैसे मैं कोई गीत लिखूँ ।
मोल नही कोई अर्थो का ,
कैसे छंदों की रीत लिखूँ ।
नित निज स्वार्थ तले ,
निज की अभिलाषा में ,
बदल रही परिभाषा अपनो की,
कैसे अपनो को मीत लिखूँ ।
...."निश्चल"@...
डायरी 7
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