गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

मुक्तक 916/920

 916

जीवन मूल्य बदलते है ।

साँझ तले सब ढलते है ।

नव प्रभात की किरणों में,

तब नव आयाम उजलते है ।

....."निश्चल"@....

917

रिश्ते भी जब न टिकते हो ।

स्वर्थ तले ही सब बिकते हो ।

मर्यदा कैसी तब सम्बन्धों की,

स्वांग सभी जब लिखते हो ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@ ...

918

मुझे मुस्कुराने का तरीका न आया ।

जिंदगी जीने का सलीका न आया ।

मैं करता रहा ऐतवार अपने ईमान पर ,

पर जमाने को मुझ पे अक़ीदा न आया ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@...

919

ख़ामोश ख्यालों को जुबां दे गई तेरी ग़जल ।

कुछ लिखने की बजह दे गई तेरी ग़जल ।

ढूंढ़ता ही रहा मंजिल दिन के उजालों में ,

राह में चलने को जगह दे गई तेरी ग़जल ।

...."निश्चल"@....

920

मैं उदास क्यो मुझको पता नही ।

जिंदगी आस को ढो रही है कही ।

जीवन की इस भूल भुलैया में ,

शायद खुशियाँ खो रही है कही ।

.....विवेक "निश्चल"@...

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...