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जय पराजय से परे चलें ।
नित आगे पग धरे चलें ।
एक आस जगे उत्साह मिलें ।
नव जीवन के आयाम मिलें ।
बिन हारे थके निश्चल चलें।
नव प्रभात के आँचल तले ।
पथ प्रशस्त की भोर खिले ।
उज्वल कल की और चलें ।
अभिलाषाओं के फ़ूल खिले ।
नव आशाओं के दीप जले ।
कुंठाओं को हम जीत चले ।
पुलकित मन नव वर्ष तले ।
....विवेक "निश्चल"@..
Blog post 9/1/21
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